Monday, November 11, 2013

लफ़्ज़ों  का व्यापार सिखा दे
मुझको दुनियादार बना दे

ख़ौफ़-ए- ख़ुदा यूँ क़ायम होगा
मुझको  थोड़ी और सज़ा दे

मिसरे नारों से गूँजेंगे
स्याही में कुछ ख़ून मिला दे 

तौबा कि टूटन के ग़म में 
मुझको थोड़ी और पिला दे

मैं अब ख़ुद से ऊब  गया हूँ
मुझको कोई और बना दे

Thursday, November 7, 2013

कोई पूछता नहीं है, कोई छेड़ता नहीं है
मेरे काम आ रहा है, 'मेरा काम का न होना' !!

कोई इत्तेफ़ाक़ है या चले जाने का इशारा
तेरी बज़्म में हमारे लिए जाम का न होना

मेरे हाथ सिर्फ मेहनत, तेरे हाथ में थी शोहरत
तो ख़ता बता है किसकी, मेरे नाम का न होना

मुझे याद आयी अक़सर वो शुरू की बेकरारी
मेरा दिन न काट पाना तेरी शाम का न होना

सुनें मंज़िलों के क़ैदी, बस इसी में है रिहाई
किसी धाम का न होना, किसी गाम का न होना

Tuesday, October 1, 2013

अब तक देखना चाहा नहीं या तुमको दिखा नहीं है
इस दुनिया में दुनिया वालो कुछ भी नया नहीं है

इश्क किया है, दिल टूटा है, तब यह कह सकते हैं
ऐसा कोई दर्द नहीं जो हमने सहा नहीं है

मैंने ज़ुल्म किये ये सच है लेकिन तू भी चुप था
हाँ मैं इन्सां नहीं हूँ लेकिन तू भी ख़ुदा नहीं है

हर ज़ालिम को जिंदा रखके उसके ज़ुल्म गिनाओ
मर जाना तो बच जाना है कोई सज़ा नहीं है

मेरे अंदर शोर है कोई जिसको रक़म किया है
हाँ! ये मेरा लिखा है पर मेरा कहा नहीं है

Monday, September 16, 2013

दिल को ग़म से  भर जाना है
ये जीवन का हर्जाना है

सोचके  हैरानी होती है
हमको इक दिन मर जाना है

कुछ दिन के मेहमान यहाँ फिर
सबको  अपने घर जाना है

आंसू की भी  क्या क़िस्मत है
सुख में दुःख में झर जाना है

मल्हा, तूफां मौजें सुन लें
इस कश्ती को तर जाना है

Friday, August 30, 2013

  नाम की तख्ती को अब दुनिया ऐसे भी चमकाती है
नज़रों में आने की ख़ातिर नज़रों से गिर जाती है

 जिस चाहत के दम पे तूने जां फूंकी इस  मुर्दे में
हैरत है वो चाहत तुझपे मरने को उकसाती है

तू क्या जाने तुझ तक आना कितना मुश्किल होता है
तुझ तक आती रह भी तेरे रस्ते भटकाती है

 झूठ भी बोले, चोरी कर ली खुद को तिल-तिल बेचा भी
देखें दुनिया, दुनियादारी में अब क्या करवाती है

जिस चाहत ने मेरे अंदर की चाहत को  मार दिया
अब वो चाहत मुझसे चाहत के क़िस्से लिखवाती है

Monday, July 1, 2013

है दौर जवानी का ऐसा, दिन- रात से ख़ुशबू आती है
हो जाए इसमें इश्क भी तो , हर बात से ख़ुशबू आती है

मैं उससे मिला हूँ जिस दिन से, एहबाब ये कहते हैं मेरी
इस बात से ख़ुशबू आती है, उस बात से ख़ुशबू आती है

देखा कंक्रीट को भीगते जो, बादल ने कहा मायूसी से
मिट्टी  के मकां पे गिरती हुई, बरसात से ख़ुशबू आती है

वो फूल जो दफन किताबों में, वो ख़त जो सहेली लाती थी
नाकाम मुहब्बत की इक-इक, सौगात से ख़ुशबू आती है!!

Thursday, June 13, 2013

इस जहां में अब येही दस्तूर होना चाहिए
सच के हाथों  झूठ को मजबूर होना चाहिए

तू जिसे मिल जाए उसकी पारसाई क़ुफ़्र है
उसको चाहत के नशे में चूर होना चाहिए

पास इतने हो की घुलते जा रहे हो मुझमें तुम
हम को इक-दूजे से थोडा दूर होना चाहिए

जिसने दिल में पाल रखा हो मुहब्बत का चिराग़
उसके चेहरे पे बला का नूर होना चाहिए

झुक के चलने में यहाँ दब जाने के आसार हैं
एहतियातन आपको मग़रूर होना चाहिए





Friday, June 7, 2013

तेरी आँखें मुझे बहका रहीं हैं
मुहब्बत करने को उकसा रहीं हैं

उजाला ख़ुद अंधेरों का है ख़ालिक़
मुझे परछाईयाँ बतला रहीं हैं

मुझे देखा जो महफ़िल में तभी से
मेरी तन्हाइयां पछता रहीं हैं

यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
अभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं


Thursday, May 16, 2013

उसको डर भगवान नहीं है
वो जो ख़ुद इंसान नहीं है

मुझ में से वो यूँ निकली है
जैसे मेरी जान नहीं है

सबकी नज़रों से गिर जाना
इतना भी आसान नहीं है

दिल के बदले में दिल दे दे
वो इतना नादान नहीं है

हैरत है  तन्हाई में भी
दिल की गली सुनसान नहीं है

मुझ पर भी इक राज़ खुला है
वो मुझसे अनजान नहीं है

Monday, May 6, 2013

उनकी आँखों का तीर हो जाऊं
दर्दमंदों का पीर हो जाऊं

मेरे पिंजरे को तोड़ने वाले
क्या मैं तेरा असीर हो जाऊं?

न लियाक़त है ना हुनर कोई
सोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं

दौलतें दे जहान को; मुझको
ऐसा कुछ दे फ़क़ीर हो जाऊं

 

Wednesday, April 3, 2013

दुनिया में जितने दिल टूटे, मेरे तुम्हारे दिल हैं
युं हर आशिक़ के क़िस्से में हम थोड़े से शामिल हैं

मेरी सोच में इससे बढ़ कर और सज़ा  ना होगी
उम्र मेरी उनको लग जाए जो मेरे क़ातिल हैं

शेर' हमारे और ये ग़ज़लें पर्दा हैं ऐबों का
हम क्या हैं ये उनसे पूछो हम जिनको हासिल हैं

उसके बिछड़ने का पछतावा छोड के अब सोचेंगे
हम जिनके हिस्से में आये क्या उनके क़ाबिल हैं?

Wednesday, March 20, 2013

यूँ ना सब से डर के देखो
मुझको आँखें भर के देखो

सच कहता हूँ जी उठ्ठोगी
मुझपे थोडा मर के देखो
 
आना-जाना छुट जाएगा
मेरी बाहें धर के देखो

सादेपन को उम्र पड़ी है
कुछ शैतानी कर के देखो

ऊंचाई पे तन्हाई है
तुम झरने सा झर  के देखो

Thursday, March 14, 2013

मामूली यह बात नहीं जो तुझपे आकर अटके हैं
नैन मेरे बंजारे हैं जो चेहरों- चेहरों भटके हैं

बारिश की पहली बूंदों में गर्मी और ख़ुशबू भी है
यूं लगता है जैसे गीले बाल किसीने झटके हैं

हर इन्सां के अन्दर नेकी और बदी मिल जायेगी
तो फिर सबको क्यों लगता है हम औरों से हटके हैं

उसकी राहें तकते हम यूं पल-पल मरते जाते थे
रक्खे-रक्खे रिस्ते  जाते ज्यों पानी के मटके हैं

शायद मौत ही आखिर में कुछ राहत लेके आएगी
वरना जीते-जी तो मेरी जान को सौ-सौ खटके हैं


Monday, March 4, 2013

बीते कल में जीते रहने से ज़िंदा हूँ
मैं तो यादों की बस्ती का बाशिंदा हूँ

मैंने चोरी की थी क्योंकि मैं भूखा था
लेकिन जबसे पेट भरा है शर्मिन्दा हूँ

मेरे ज़रिये रब को पाना नामुमकिन है
मैं तेरा मज़हब हूँ तो उसका धंधा हूँ

दुनिया मेरी बातें दोहराती जाती है
यूँ लगता है जैसे अब भी मैं ज़िंदा हूँ

मुझको सबके अंदर तू ही तू दिखता है
 लेकिन सब कहते हैं सावन का अंधा हूँ

Thursday, February 21, 2013

उम्र न यूँ बेकार करेंगे
हम कल ही इज़हार करेंगे

उनके आने तक हम उनकी
 तस्वीरों से प्यार करेंगे

चार किताबें पढ़कर हम भी
मज़हब का व्यापार करेंगे

हम से हर दम जीतने वाले
अबके हम भी वार करेंगे

मुफ़लिस हैं और बेकारी है
मज़हब की बेगार करेंगे

मल्हा, कश्ती छोडके हम तो
तैर के दरिया पार करेंगे






Sunday, February 10, 2013

हर ग़म-ए-लाज़िम का चेहरा याद है
दिल के उस हाक़िम का चेहरा याद है

दिल-नगर की शाहज़ादी सच बताना
क्या तुझे ख़ादिम का चेहरा याद है

आंसुओं से धुल के जिसपे नूर आया
मुझको उस नादिम का चेहरा याद है

उसके मूंह को ख़ून मेरा लग चुका है
मुझको भी ज़ालिम का चेहरा याद है

मेरे घर की ले गयी हरियालियाँ जो
मुझको उस रिम-झिम का चेहरा याद है

 

Friday, January 25, 2013

हमें, ऐसा नहीं हसरत नहीं है
मगर इस दौर को फुर्सत नहीं है

जो देता है मुझे कम है; तो शायद
ख़ुदा के हाथ में बरकत नहीं है

ये सच है दिल नहीं मिलते हमारे
हमें तुमसे मगर नफरत नहीं है

तुम्हारे डर  से घर छोड़ा किसी ने
तो फिर ये ज़ुल्म है हिजरत नहीं है 

Monday, January 7, 2013

मुझे तुम और मुश्किल में न डालो
मेरे चेहरे से ये नज़रें हटा लो

अगर ज़ालिम का कुछ न कर सको तो
कम-अज़-कम आसमां  सर पे उठा लो

ख़बर में तुम नहीं कितने दिनों से
दबा-कुचला कोई मुदआ उछालो

चलो हम पैर रखते हैं दोबारा
चलो जल्दी से तुम आँखें बिछा लो

ये बरसों की मुहब्बत का सिला हैं
लो! मेरी आँख के आंसू संभालो