Monday, December 8, 2014

कैकयी से तो क़ौल निभाया है हमने
सीता को बनवास दिलाया है हमने

हाथ हमारे कटकर गिरने हैं इक दिन
फूलों पर तेज़ाब गिराया है हमने

उसको पाया है तो इसमें हैरत क्या
आख़िर अपना-आप गंवाया है हमने

देखना पत्थर मोम सरीखा पिघलेगा
उसको अपना हाल सुनाया है हमने

औज़ारों को हाथ हमारे चुभते हैं
जबसे ये हथियार उठाया है हमने

Wednesday, October 1, 2014

हाँ मेरे ज़ख़्म भर गए लोगो
पर मेरे शौक़ मर गए लोगो

मैं तुम्हे देख कर ही बिगड़ा था
और तुम सब सुधर गए लोगो

सब हमें देखें इस क़वायद में
हर नज़र से उतर गए लोगो

उनके आने की सिर्फ़ अफ़वाह थी
और हम सज-संवर गए लोगो

उनके हाथों सिमटने की ज़िद मे
ख़ुद-ब-ख़ुद हम बिखर गए लोगो

Friday, September 5, 2014

सेहन में  यूँ उजाला कर लिया है
उन आँखों को सितारा कर लिया  है

हमे भर जाने से परहेज़ है, सो
छलक जाना गवारा कर लिया है

परी चेहरों! रहो तनहा कि हमने
मुहब्बत से किनारा कर लिया है

मज़े में हूँ ग़रीबी में भी जबसे
ज़रा छोटा निवाला कर लिया है

अरी यादो! चली जाओ कि उनको
भुलाने का इरादा कर लिया है

Tuesday, June 3, 2014

तेरे टूटते वादे, शर्मसार करते हैं
और फिर भरोसे को तार-तार करते हैं

यह जो सब सितारे हैं, रौशनी के धब्बे हैं
मख़मली  अँधेरे को दाग़दार करते हैं

ख़ामियां व ऐब उनके, दुश्मनों को बतलाओ
हम न  कुछ सुनेंगे, हम उनसे  प्यार करते हैं

हमको छोड़ जाने का उनको ग़म नहीं लेकिन
ग़र मिलें तो कहना हम इंतज़ार करते हैं

चाहतों का जीते-जी क्या सुबूत दें हम, बस
 तुमसे प्यार करते हैं, बेशुमार करते हैं 


Friday, March 7, 2014

उसने माँगा है इक  वचन फिर से
हम भी रख लेंगे उसका मन फिर से

शुक्र मानें कि आप जुगनू हैं
लग गया चाँद  ग्रहन फिर से

कोई जाकर ख़िज़ाँ बुला लाओ
खिल के तैयार है चमन फिर से

मेरी ग़लती पे उसकी ख़ामोशी
रख गई दिल पे इक वज़न फिर से

ज़ेहन-ओ-दिल फिर से लड़ पड़े मेरे
सख्त मुश्किल में है बदन फिर से

उसका भी मन है मान जाने का
हम भी कर कर लेते हैं जतन फिर से

फिर मुहाजिर कहा गया हमको
मिलके रोयेंगे हम-वतन फिर से 

Monday, February 24, 2014

हिज्र कि रुत गुलाब की जाए
आज क्यों ना शराब पी जाए

हमने सोचा है उसके वादे पे
ज़िंदगानी  गुज़ार दी जाए

 हो चला वक़्त उसके आने का
शक़्ल-ओ-सूरत संवार ली जाए


Wednesday, January 29, 2014

मां-बाप कि ग़ुर्बत पे यूँ पड़ता रहा पर्दा
भाई कि कमीज़ों को बड़े शौक़ से पहना

 जिसने कभी उतरन नहीं पहनी हो क्या जाने
खद्दर  का लबादा मुझे क्योंकर नहीं चुभता

कल मेरा था, अब उसका है कल होगा किसी का
मैं उसका था मैं उसका हूँ मैं उसका रहूँगा

जिसने मुझे आज़ाद किया क़ैद-ए-बदन से
मैं उसको दुआएं नहीं देता तो क्या करता

Monday, January 20, 2014

प्यार मुझसे जताती रहती  है
और फिर आज़माती  रहती है

ज़िक्र मेरे   सुधरने  का करके
ऐब मेरे गिनाती रहती है

मेरी तन्हाइयों के शानों पर
याद चाबुक चलाती रहती है

उसको आना है ख्वाब में शायद
नींद चक्कर लगाती रहती है

दर्द अपने सुनाने को दुनिया
शेर' मुझसे लिखाती रहती है !