Monday, February 16, 2015

सौ  'आहें' और हज़ार 'वाहें'  

पुराने ज़ख्म  कुरेदो  तो दाद मिलती है 
खुद अपने बखिये  उधेड़ो तो दाद मिलती  है 

नपे -तुले  से ये मिसरे  कोई  कमाल  नहीं 
जो  इनपे  ख़ून  उड़ेलो  तो दाद मिलती है

 कभी -कभी  तो ये देखा  कि  सादा  मिसरे  की 
ज़रा  सी  बांह  मरोड़ो  तो दाद मिलती है

जदीदियत  को  हमारा  भी  वोट  है  लेकिन 
ग़ज़ल ; ग़ज़ल  की  सी  छेड़ो  तो दाद मिलती है

Wednesday, February 11, 2015

इतना न करो ग़म जो वचन टूट रहा है
वैसे भी अब वफ़ा का चलन टूट रहा है 

फिर आइयेगा आप कि वो मिल नहीं सकते
आराम की थकन है बदन टूट रहा है 

दुनिया मसाइल को जो हल करने चले थे
उनको ख़बर भी है कि वतन टूट रहा है 

तुमने तो फूल तोड़ के सूंघा, मसल दिया
इस हादिसे को देख चमन टूट रहा है

उस शोख़ पे मिसरा कोई कहने की हवस में
हम देख न पाये की कहन टूट रहा है