Thursday, October 8, 2015

सुनके ये टूटे हैं भरम सारे
उसके एहसान थे करम सारे

 इससे पहले कि मौत आ जाए
आप कर लीजिये सितम सारे

फिर मुहब्बत न मोहलतें मोहलतें देगी
दूर कर लीजिये वहम सारे

वक़्त चुन लेगा ज़ालिम-ओ-मज़लूम
हादिसे कीजिये रक़म सारे

Wednesday, September 16, 2015

ये अदा ये सुख़न बहाना है
हमको तो हाल-ए-दिल सुनाना है

मेरी मजबूरियाँ समझ मौला
छोड़ कर जिस्म मुझको आना है

ये मेरा जिस्म, और ये दुनिया
क़ैदख़ाने में क़ैदख़ाना है

मैं उसे बेवफ़ा नहीं कहता
ख़्वाब में अब भी आना-जाना है

इक मुनासिब सा दिन बता दीजे
हाल अपना हमें सुनाना है

हम भी देखेंगे उसकी आँखों में
हमको भी ज़ब्त आज़माना है
जब से इंसान कर दिया तूने
जिस्म ज़िन्दान  कर दिया तूने

ऐ मिलनसार और हसीं चेहरे
इश्क़ आसान कर दिया तूने

अश्क मोती हैं गर ये सच है तो
कितना नुक़सान कर दिया तूने

मेरे ईमान की हिफ़ाज़त कर
जब मुसलमान कर दिया तूने

फूल से ज़ख़्म बख़्श कर जानां
दिल को गुलदान कर दिया तूने

इस तरह उठ के मेरे पहलू से
मुझको वीरान कर दिया तूने

Friday, August 7, 2015

जब वो बोले कि कोई  प्यारा था
उनका मेरी तरफ इशारा था

हम निकल आये जिस्म से बाहर
उसने कुछ इस तरह पुकारा था

फेर देता था वो नज़र अपनी
हर नज़र का यही  उतारा था

रात देखा नहीं पर सुनते हैं
चाँद इक मुन्तज़िर हमारा था

मेरे अपने जलाते हैं मिलकर
मुझको जो जिस्म जां से प्यारा था

डूब जाना ही ठीक था मेरा
मेरे दोनों तरफ़ किनारा था


Wednesday, July 15, 2015

किसी मज़लूम की आहों की अब तासीर होना है
क़लम सुन ले तुझे इस दौर की  शमशीर होना है

मैं उसकी आँखों का काजल था उसने पोंछ ली आँखें
सो अबकी बार उसके पाऊँ की ज़ंजीर होना है

ये मुश्किल आपकी है आप आख़िर किसके होते हैं
हमे तो आपकी बस आपकी जागीर होना है

दुआएं मांगते हैं इसलिए अपने उजड़ने की
हमें तो यार तेरे हाथ से तामीर  होना है

हवा को क्या ख़बर आख़िर मैं इसको क्यों  बुलाता हूँ
मुझे अपनी उड़ाकर ख़ाक आलमगीर होना है

Thursday, May 28, 2015

तुम्हारी राह तकता हो कोई आँगन ज़रूरी है
मुहब्बत की कहानी में कोई बिरहन ज़रूरी है

धड़कता  दिल,ज़रा जुर्रत ये सब तो चाहिए लेकिन
मुहब्बत के लिए थोड़ा सा पागलपन ज़रूरी है

ज़रुरत कह रही थी मांग लूं लेकिन कहा दिल ने 
तुम्हारे हाथ में सोने का ये कंगन ज़रूरी है 

दबा ले अपनी हर हसरत तुम्हारा मान रखने को
तुम्हारी ज़िन्दगी में ऐसी इक जोगन ज़रूरी है

मनाने-रूठने की रस्म से ही प्यार है ज़िंदा 
हमारे बीच में होती है जो अनबन ज़रूरी है

Thursday, March 5, 2015

कहें आसां ज़बां में कुछ बड़ा अरमान होता है
मगर आसान कुछ कहना कहाँ आसान होता है

 तुम्हारे साथ गुज़रे पल गुहर हो जाते हैं जानां
चले आओ तुम्हारे बिन बड़ा नुकसान होता है

बलन्दी की तरफ़ जाते हुए मजमे हैं यारों के
उतरते वक़्त  रस्ता बड़ा सुनसान होता है

गुज़र जाते हैं बरसों इक भली आदत बनाने में
बुरी आदत लगा लेना बड़ा आसान होता है

ये ख़िदमत और ख़ुशामद चाहता; नख़रे दिखाता सा
ख़याल-ए-यार ऐसा है की ज्यों मेहमान होता है 

Monday, February 16, 2015

सौ  'आहें' और हज़ार 'वाहें'  

पुराने ज़ख्म  कुरेदो  तो दाद मिलती है 
खुद अपने बखिये  उधेड़ो तो दाद मिलती  है 

नपे -तुले  से ये मिसरे  कोई  कमाल  नहीं 
जो  इनपे  ख़ून  उड़ेलो  तो दाद मिलती है

 कभी -कभी  तो ये देखा  कि  सादा  मिसरे  की 
ज़रा  सी  बांह  मरोड़ो  तो दाद मिलती है

जदीदियत  को  हमारा  भी  वोट  है  लेकिन 
ग़ज़ल ; ग़ज़ल  की  सी  छेड़ो  तो दाद मिलती है

Wednesday, February 11, 2015

इतना न करो ग़म जो वचन टूट रहा है
वैसे भी अब वफ़ा का चलन टूट रहा है 

फिर आइयेगा आप कि वो मिल नहीं सकते
आराम की थकन है बदन टूट रहा है 

दुनिया मसाइल को जो हल करने चले थे
उनको ख़बर भी है कि वतन टूट रहा है 

तुमने तो फूल तोड़ के सूंघा, मसल दिया
इस हादिसे को देख चमन टूट रहा है

उस शोख़ पे मिसरा कोई कहने की हवस में
हम देख न पाये की कहन टूट रहा है

Thursday, January 29, 2015

 थाम ले आके जो सुनता हो दुहाई मेरी
बस तेरे हाथ में जंचती है कलाई मेरी

यूँ मेरे होने का दुनिया को पता मिलता है
उनसे कहना  कि करें और बुराई मेरी

याद-ए -माज़ी या तेरे ख़त से बहलता ही नहीं
दिल को कम पड़ने लगी यार कमाई मेरी

तेरा इक़रार मुझे सिर्फ तेरा कर देता
तेरे इंकार ने तो मांग बढ़ाई मेरी

तब कहीं जाके मेरे वज़्न का एहसास हुआ
लाश काँधे पे जो दुनिया  ने उठाई मेरी