Thursday, February 21, 2013

उम्र न यूँ बेकार करेंगे
हम कल ही इज़हार करेंगे

उनके आने तक हम उनकी
 तस्वीरों से प्यार करेंगे

चार किताबें पढ़कर हम भी
मज़हब का व्यापार करेंगे

हम से हर दम जीतने वाले
अबके हम भी वार करेंगे

मुफ़लिस हैं और बेकारी है
मज़हब की बेगार करेंगे

मल्हा, कश्ती छोडके हम तो
तैर के दरिया पार करेंगे






Sunday, February 10, 2013

हर ग़म-ए-लाज़िम का चेहरा याद है
दिल के उस हाक़िम का चेहरा याद है

दिल-नगर की शाहज़ादी सच बताना
क्या तुझे ख़ादिम का चेहरा याद है

आंसुओं से धुल के जिसपे नूर आया
मुझको उस नादिम का चेहरा याद है

उसके मूंह को ख़ून मेरा लग चुका है
मुझको भी ज़ालिम का चेहरा याद है

मेरे घर की ले गयी हरियालियाँ जो
मुझको उस रिम-झिम का चेहरा याद है