है दौर जवानी का ऐसा, दिन- रात से ख़ुशबू आती है
हो जाए इसमें इश्क भी तो , हर बात से ख़ुशबू आती है
मैं उससे मिला हूँ जिस दिन से, एहबाब ये कहते हैं मेरी
इस बात से ख़ुशबू आती है, उस बात से ख़ुशबू आती है
देखा कंक्रीट को भीगते जो, बादल ने कहा मायूसी से
मिट्टी के मकां पे गिरती हुई, बरसात से ख़ुशबू आती है
वो फूल जो दफन किताबों में, वो ख़त जो सहेली लाती थी
नाकाम मुहब्बत की इक-इक, सौगात से ख़ुशबू आती है!!
हो जाए इसमें इश्क भी तो , हर बात से ख़ुशबू आती है
मैं उससे मिला हूँ जिस दिन से, एहबाब ये कहते हैं मेरी
इस बात से ख़ुशबू आती है, उस बात से ख़ुशबू आती है
देखा कंक्रीट को भीगते जो, बादल ने कहा मायूसी से
मिट्टी के मकां पे गिरती हुई, बरसात से ख़ुशबू आती है
वो फूल जो दफन किताबों में, वो ख़त जो सहेली लाती थी
नाकाम मुहब्बत की इक-इक, सौगात से ख़ुशबू आती है!!
Sakhi: Kya khena: देखा कंक्रीट को भीगते जो, बादल ने कहा मायूसी से
ReplyDeleteमिट्टी के मकां पे गिरती हुई, बरसात से ख़ुशबू आती है
क्या कहने, बहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134
good one..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल .. आपकी इस उत्कृष्ट रचना कि चर्चा कल ७ जुलाई, रविवार को ब्लोग प्रसारण पर भी .. कृपया पधारें ..
ReplyDeleteसुंदर गजल, साझा करने के लिए आभार
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
विशाल जी
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है
देखा कंक्रीट को भीगते जो, बादल ने कहा मायूसी से
मिट्टी के मकां पे गिरती हुई, बरसात से ख़ुशबू आती है... वाह!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति को कल रविवार, दिनांक 28/07/13 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर प्रसारित किया जाएगा ... साभार सूचनार्थ