Saturday, April 28, 2012

सुबह होने में देर हो शायद!!

रात तो ढल चुकी है हाँ लेकिन
सुबह होने में देर हो शायद

जागते हैं अभी क़लम-कागज़
मुझको सोने में देर हो शायद

कुछ ख़यालों में है झिझक बाक़ी
शेर होने में देर हो शायद

और कितने ही काम बाक़ी हैं
ज़ख्म धोने में देर हो शायद

वो दिलासा सभी को देता है
उसको रोने में देर हो शायद

मुझको दुनिया से भी निभानी है
तेरा होने में देर हो शायद

Wednesday, April 18, 2012

इश्क जो सीने में पनपे तो सूरत और निखरती है

हिम्मत को ग़र अक्ल मिले तो तख्तों पे जा चढ़ती है
हिम्मत हो या अक्ल हो लेकिन  हुस्न का पानी भरती है

मेरी ही अंदर की मुहब्बत बह गई शायद आँखों से
वर्ना चुपके-चुपके वो तो आज भी मुझपे मरती है

हम दिल की कर ही लेते हैं क़ुफ्र-ओ-सवाब के पर्दे में
और खुदा को ये लगता है दुनिया उस से डरती है

अच्छी शक्लों वाले सुन लें, जांचा परखा नुस्खा है
इश्क जो सीने में पनपे तो सूरत और निखरती है

अक्ल-ओ-हुनर भी होंगे लेकिन मेरे अब्बू कहते हैं
मेहनत करने वालों की तो क़िस्मत और संवरती है