Friday, May 18, 2012

सीने में इक आग लगाए रखते हैं
मुझको मेरे ख़्वाब जगाये रखते हैं
 
जीने की ये कोशिश हमको मार न डाले
हम दिल के अरमान दबाये रखते हैं
 
मुफलिस को आराम नहीं है उसको अक्सर
आटा, चावल, दाल भगाए रखते हैं
 
हाँ! हम उनसे ख़्वाबों में ही मिलते हैं पर
उन से  यूँ पहचान  बनाए रखते हैं
 
उसका लौट के आना नामुमकिन है लेकिन
हम  फिर भी घर-बार सजाये रखते हैं

Wednesday, May 2, 2012

सच यहाँ बीती कहानी हो गया

सच यहाँ बीती कहानी हो गया
झूठ सबका यार-ए-जानी हो गया
 
हुस्न तेरा शाम की चादर तले
चम्पई से धानी- धानी हो गया
 
हम जहाँ मिलते थे जानां  वो शजर
गुमशुदा कोई निशानी हो गया
 
मेरा बेटा फ़र्ज़ के सहराओं में
हू-ब-हू मेरी जवानी हो गया
 
एक आंसू वक़्त की देहलीज़ पर
जैसे दरिया की रवानी हो गया
 
मैं जो प्यासा लौट आया हूँ विशाल
इक समंदर पानी पानी हो गया