हिम्मत को ग़र अक्ल मिले तो तख्तों पे जा चढ़ती है
हिम्मत हो या अक्ल हो लेकिन हुस्न का पानी भरती है
मेरी ही अंदर की मुहब्बत बह गई शायद आँखों से
वर्ना चुपके-चुपके वो तो आज भी मुझपे मरती है
हम दिल की कर ही लेते हैं क़ुफ्र-ओ-सवाब के पर्दे में
और खुदा को ये लगता है दुनिया उस से डरती है
अच्छी शक्लों वाले सुन लें, जांचा परखा नुस्खा है
इश्क जो सीने में पनपे तो सूरत और निखरती है
अक्ल-ओ-हुनर भी होंगे लेकिन मेरे अब्बू कहते हैं
मेहनत करने वालों की तो क़िस्मत और संवरती है
बहुत बढ़िया गज़ल......
ReplyDeleteअच्छी शक्लों वाले सुन लें, जांचा परखा नुस्खा है
इश्क जो सीने में पनपे तो सूरत और निखरती है
बधाई कबूल करें विशाल जी.
अनु
उम्दा !!
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन अगर आप डिसऎबल कर दें तो कमेंट करने में आसानी होगी ।
मोहक ,विचारशील रचना आभार जी /
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