Monday, March 4, 2013

बीते कल में जीते रहने से ज़िंदा हूँ
मैं तो यादों की बस्ती का बाशिंदा हूँ

मैंने चोरी की थी क्योंकि मैं भूखा था
लेकिन जबसे पेट भरा है शर्मिन्दा हूँ

मेरे ज़रिये रब को पाना नामुमकिन है
मैं तेरा मज़हब हूँ तो उसका धंधा हूँ

दुनिया मेरी बातें दोहराती जाती है
यूँ लगता है जैसे अब भी मैं ज़िंदा हूँ

मुझको सबके अंदर तू ही तू दिखता है
 लेकिन सब कहते हैं सावन का अंधा हूँ

2 comments:

  1. Kis kis gazal ki tareef karoon..ek ek gazal nayaab moti jaisi hai. bahut khoobsurat !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. bohot shukriya Shaily Ji.
      Please keep visiting.
      Vishal

      Delete