तेरी आँखें मुझे बहका रहीं हैं
मुहब्बत करने को उकसा रहीं हैं
उजाला ख़ुद अंधेरों का है ख़ालिक़
मुझे परछाईयाँ बतला रहीं हैं
मुझे देखा जो महफ़िल में तभी से
मेरी तन्हाइयां पछता रहीं हैं
यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
अभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं
मुहब्बत करने को उकसा रहीं हैं
उजाला ख़ुद अंधेरों का है ख़ालिक़
मुझे परछाईयाँ बतला रहीं हैं
मुझे देखा जो महफ़िल में तभी से
मेरी तन्हाइयां पछता रहीं हैं
यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
अभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं
यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
ReplyDeleteअभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं
.......... क्या बात कही है .. बहुत खूब .. बढ़िया गज़ल !