उसको डर भगवान नहीं है
वो जो ख़ुद इंसान नहीं है
मुझ में से वो यूँ निकली है
जैसे मेरी जान नहीं है
सबकी नज़रों से गिर जाना
इतना भी आसान नहीं है
दिल के बदले में दिल दे दे
वो इतना नादान नहीं है
हैरत है तन्हाई में भी
दिल की गली सुनसान नहीं है
मुझ पर भी इक राज़ खुला है
वो मुझसे अनजान नहीं है
वो जो ख़ुद इंसान नहीं है
मुझ में से वो यूँ निकली है
जैसे मेरी जान नहीं है
सबकी नज़रों से गिर जाना
इतना भी आसान नहीं है
दिल के बदले में दिल दे दे
वो इतना नादान नहीं है
हैरत है तन्हाई में भी
दिल की गली सुनसान नहीं है
मुझ पर भी इक राज़ खुला है
वो मुझसे अनजान नहीं है
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
सिर्फ आपको पढ़ने ही वापस लौटा हूँ , आपका सबसे बड़ा फैन जो हूँ |
ReplyDeleteसादर
आखिरी मिसरा सबसे सुन्दर लगा |
ReplyDeleteसादर