उनकी आँखों का तीर हो जाऊं
दर्दमंदों का पीर हो जाऊं
मेरे पिंजरे को तोड़ने वाले
क्या मैं तेरा असीर हो जाऊं?
न लियाक़त है ना हुनर कोई
सोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं
दौलतें दे जहान को; मुझको
ऐसा कुछ दे फ़क़ीर हो जाऊं
दर्दमंदों का पीर हो जाऊं
मेरे पिंजरे को तोड़ने वाले
क्या मैं तेरा असीर हो जाऊं?
न लियाक़त है ना हुनर कोई
सोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं
दौलतें दे जहान को; मुझको
ऐसा कुछ दे फ़क़ीर हो जाऊं
खुबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteHausla badhaane ke liye aabhaar!!
DeleteVishal
Hausla badhaane ke liye aabhaar!!
ReplyDeleteVishal
बहुत खूब ... फ़कीर हो जाना ही जीवन है ..
ReplyDeleteशानदार...
ReplyDeleteवाह!!!
हुमा को तलाशे हैं महलो-महल्ले..,
ReplyDeleteवो सरताज हो तो कोई शहरयार हो.....
हुमा = " एक ऐसा परिंदा जिसके बारे में मान्यता है कि यह
जिसके सिर पर बैठ जाए वह बादशाह बन जाता है"
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभकामनाएं
Gahre Bhao...
ReplyDeletebahut badhiya...kuchh aisa de ki fakir ho jaaun !
ReplyDeleteन लियाक़त है ना हुनर कोई
ReplyDeleteसोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं
कोई दिक्कत नहीं आज बहुत बैठे हैं सरकार में ऐसे,जरूरत तो बस किसी गोड फादर की ही है.सुन्दर कविता
कुछ ऐसा दे
ReplyDeleteकि फ़कीर हो जाऊँ ||
सुन्दर
Sakhi--- gud one
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