Monday, May 6, 2013

उनकी आँखों का तीर हो जाऊं
दर्दमंदों का पीर हो जाऊं

मेरे पिंजरे को तोड़ने वाले
क्या मैं तेरा असीर हो जाऊं?

न लियाक़त है ना हुनर कोई
सोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं

दौलतें दे जहान को; मुझको
ऐसा कुछ दे फ़क़ीर हो जाऊं

 

14 comments:

  1. खुबसूरत अभिव्यक्ति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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  3. Hausla badhaane ke liye aabhaar!!
    Vishal

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  4. बहुत खूब ... फ़कीर हो जाना ही जीवन है ..

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  5. हुमा को तलाशे हैं महलो-महल्ले..,
    वो सरताज हो तो कोई शहरयार हो.....

    हुमा = " एक ऐसा परिंदा जिसके बारे में मान्यता है कि यह
    जिसके सिर पर बैठ जाए वह बादशाह बन जाता है"

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  6. बहुत सुंदर रचना
    शुभकामनाएं

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  7. bahut badhiya...kuchh aisa de ki fakir ho jaaun !

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  8. न लियाक़त है ना हुनर कोई
    सोचता हूँ वज़ीर हो जाऊं
    कोई दिक्कत नहीं आज बहुत बैठे हैं सरकार में ऐसे,जरूरत तो बस किसी गोड फादर की ही है.सुन्दर कविता

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  9. कुछ ऐसा दे
    कि फ़कीर हो जाऊँ ||
    सुन्दर

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  10. Sakhi--- gud one

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