Wednesday, March 20, 2013

यूँ ना सब से डर के देखो
मुझको आँखें भर के देखो

सच कहता हूँ जी उठ्ठोगी
मुझपे थोडा मर के देखो
 
आना-जाना छुट जाएगा
मेरी बाहें धर के देखो

सादेपन को उम्र पड़ी है
कुछ शैतानी कर के देखो

ऊंचाई पे तन्हाई है
तुम झरने सा झर  के देखो

Thursday, March 14, 2013

मामूली यह बात नहीं जो तुझपे आकर अटके हैं
नैन मेरे बंजारे हैं जो चेहरों- चेहरों भटके हैं

बारिश की पहली बूंदों में गर्मी और ख़ुशबू भी है
यूं लगता है जैसे गीले बाल किसीने झटके हैं

हर इन्सां के अन्दर नेकी और बदी मिल जायेगी
तो फिर सबको क्यों लगता है हम औरों से हटके हैं

उसकी राहें तकते हम यूं पल-पल मरते जाते थे
रक्खे-रक्खे रिस्ते  जाते ज्यों पानी के मटके हैं

शायद मौत ही आखिर में कुछ राहत लेके आएगी
वरना जीते-जी तो मेरी जान को सौ-सौ खटके हैं


Monday, March 4, 2013

बीते कल में जीते रहने से ज़िंदा हूँ
मैं तो यादों की बस्ती का बाशिंदा हूँ

मैंने चोरी की थी क्योंकि मैं भूखा था
लेकिन जबसे पेट भरा है शर्मिन्दा हूँ

मेरे ज़रिये रब को पाना नामुमकिन है
मैं तेरा मज़हब हूँ तो उसका धंधा हूँ

दुनिया मेरी बातें दोहराती जाती है
यूँ लगता है जैसे अब भी मैं ज़िंदा हूँ

मुझको सबके अंदर तू ही तू दिखता है
 लेकिन सब कहते हैं सावन का अंधा हूँ