Tuesday, September 18, 2012

और जहां से बेशक तोड़ के रखते हैं
आंसू बीते कल से जोड़ के रखते हैं

तुम भी इस क़िस्से का हिस्सा हो जाना
हम कुछ सतरें खाली छोड़ के रखते हैं

मंजिल की चाहत तो ख़ाम-ख़याली है
सफ़र के आशिक़  छाले फोड़ के रखते हैं

आज के दिन तुम बिलकुल याद नहीं आये
डायरी का ये पन्ना मोड़ के रखते हैं

साथ गुज़ारा वक़्त बिछाकर रखा है
तेरी सारी यादें ओढ़ के रखते हैं

6 comments:

  1. बेहतरीन गज़ल...
    और जहां से बेशक तोड़ के रखते हैं
    आंसू बीते कल से जोड़ के रखते हैं ,,,वाह!!!!
    आज के दिन तुम बिलकुल याद नहीं आये
    डायरी का ये पन्ना मोड़ के रखते हैं
    -इस पर हमने भी लिखा है कुछ...
    http://allexpression.blogspot.in/2012/09/blog-post_10.html

    ReplyDelete
  2. आपके शब्द ही आपकी खासियत हैं , जो किसी को भी आसानी से समझ में आ जाये |
    बिना कहीं भटके हुए बहुत सीधे तरीके से अपनी बात कहना |
    लाजवाब |

    ReplyDelete
  3. और जहां से बेशक तोड़ के रखते हैं
    आंसू बीते कल से जोड़ के रखते हैं
    bahut sundar ...aur bilkul sach ...!!
    shubhkamnayen ..!!

    ReplyDelete
  4. आज के दिन तुम बिलकुल याद नहीं आये
    डायरी का ये पन्ना मोड़ के रखते हैं

    बहुत सुंदर लिखा है ...
    शुभकामनायें ...

    ReplyDelete
  5. Your way of telling all in this piece of writing is truly good, all can without difficulty be aware of it, Thanks a lot.
    Feel free to visit my website ; webpage

    ReplyDelete