Friday, August 31, 2012

ठीक है इलज़ाम जो उसपे धरा है
दौर है ये खोट का और वो खरा है

यूँ न समझो एक तुम पर ही टिकी है
ज़िन्दगी  को मौत का भी आसरा है

हमको ये अफ़सोस मरहम कर न पाए
ज़ख्म को ये नाज़ के अबतक हरा है

उसने पूरे दाम देकर ली रिहाई
पहले तडपा, छटपटाया फिर मरा है

थम गयी उल्फत की बारिश हाँ मगर अब
दिल-गली में याद का पानी भरा है

4 comments:

  1. आपकी कुछ कवितायेँ पढ़ीं , वाकई बहुत सुन्दर हैं | सीधे सरल शब्द और सटीक बात |
    शायद आपसे सीखने को बहुत कुछ है |

    ReplyDelete
    Replies
    1. Mera shayar hona shayad veham hai mere yaaron kaa.. Main to bas unhi ki baatein unhein sunayaa karta hoon!!

      Delete
    2. बहुत सही कहा आपने , कवि तो हम सब के अंदर होता है लेकिन असली कला तो उचित और सटीक शब्दों का चयन करना होता है |
      और इस कला में आप माहिर हैं |

      Delete
  2. वाह...
    बेहतरीन शायरी.....
    लाजवाब शेर कहे हैं..

    अनु
    वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें प्लीस...पाठकों को सुविधा होगी.

    ReplyDelete