Thursday, February 21, 2013

उम्र न यूँ बेकार करेंगे
हम कल ही इज़हार करेंगे

उनके आने तक हम उनकी
 तस्वीरों से प्यार करेंगे

चार किताबें पढ़कर हम भी
मज़हब का व्यापार करेंगे

हम से हर दम जीतने वाले
अबके हम भी वार करेंगे

मुफ़लिस हैं और बेकारी है
मज़हब की बेगार करेंगे

मल्हा, कश्ती छोडके हम तो
तैर के दरिया पार करेंगे






3 comments:

  1. तीसरे पैरा से अचानक ही मुद्दा बदल गया | बहुत अच्छी |
    चार किताबें पढ़कर हम भी
    मज़हब का व्यापार करेंगे
    :)

    सादर

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल...
    सभी शेर सुन्दर..
    हम से हर दम जीतने वाले
    अबके हम भी वार करेंगे
    लाजवाब!!!

    अनु

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  3. kya khub kha hai---- ki abh k baar tho hum be waar karegea

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