Sunday, February 10, 2013

हर ग़म-ए-लाज़िम का चेहरा याद है
दिल के उस हाक़िम का चेहरा याद है

दिल-नगर की शाहज़ादी सच बताना
क्या तुझे ख़ादिम का चेहरा याद है

आंसुओं से धुल के जिसपे नूर आया
मुझको उस नादिम का चेहरा याद है

उसके मूंह को ख़ून मेरा लग चुका है
मुझको भी ज़ालिम का चेहरा याद है

मेरे घर की ले गयी हरियालियाँ जो
मुझको उस रिम-झिम का चेहरा याद है

 

2 comments:

  1. उसके मूंह को ख़ून मेरा लग चुका है
    मुझको भी ज़ालिम का चेहरा याद है|

    बेहतरीन गजल |

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