सीने में इक आग लगाए रखते हैं
मुझको मेरे ख़्वाब जगाये रखते हैं
जीने की ये कोशिश हमको मार न डाले
हम दिल के अरमान दबाये रखते हैं
मुफलिस को आराम नहीं है उसको अक्सर
आटा, चावल, दाल भगाए रखते हैं
हाँ! हम उनसे ख़्वाबों में ही मिलते हैं पर
उन से यूँ पहचान बनाए रखते हैं
उसका लौट के आना नामुमकिन है लेकिन
हम फिर भी घर-बार सजाये रखते हैं