Thursday, January 14, 2016

जी हमी हैं मुहब्बत के मारे हुए
दिल के टूटे हुए जां से हारे हुए

जिन से बरसों की पहचान थी छुट गई
अजनबी आज से हम तुम्हारे हुए

इस ज़मीं को भी हम रास आए नही
हम वही हैं फ़लक़ से उतारे हुए

एक दिन आई दुनिया लिए अपने ग़म
हम भी बैठे थे दामन पसारे हुए

दिल जो टूटे नहीं ख़ाक में मिल गए
 दिल जो टूटे फ़लक़ के सितारे हुए

दोष सारा हमारे जुनूँ को न दो
उनकी जानिब से भी कुछ इशारे हुए

इक नज़र के तक़ाज़े पे सब ने कहा
हम तुम्हारे हुए  हम तुम्हारे हुए 

1 comment:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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