Tuesday, October 18, 2016

मेरी मुश्किल करे आसान कोई
मुझे आकर करे हैरान कोई

ज़वाल ऐसा कि तुमको क्या बताएं
फ़रिश्ता हो गया इंसान कोई

निखरता जा रहा था रंग उसका
छिडकता जा रहा था जान कोई

मुझे दुनिया से यूँ आज़ाद करना
न बाक़ी छोड़ना पहचान कोई

अजी कुछ रोज़ के हैं चोचले फिर
हमें छोड़ आएगा शमशान कोई

बुरे हो तुम कि चाहत में तुम्हारी
मेरा निकला नहीं अरमान कोई

भुला देने की उसको ठान ली है
किया है काम कब आसान कोई


Wednesday, July 13, 2016

वो जो लिखा है सब किताबों में
 वो ही शामिल नहीं निसाबों में

उसकी  तासीर ऐसे काटी है
हमने घोला उसे शराबों में

ये मेरी हिचकियाँ बताती हैं
मैं बक़ाया हूँ कुछ हिसाबों में

तो कोई तजरुबा ही कर लें क्या
कुछ नहीं मिल रहा किताबों में

हम उसे यूं ही मिल गए होते
उसने ढूंढा नहीं ख़राबों में

आओ और आ के फिर बिछड़ बिछड़ जाओ
कुछ इज़ाफ़ा करो अज़ाबों में

और फिर बाग़ बाग़-बाग़ हुआ
एक काँटा खिला गुलाबों में


Friday, May 13, 2016

कई बार हमको मुहब्बत हुई
मगर तू भी दिल से न रुख़्सत हुई

तुझे सोचने बैठ जाता हूँ फिर
तुझे सोचने से जो फ़ुर्सत हुई

मुहब्बत के दुश्मन ख़बरदार हों
हुई फिर किसी को मुहब्बत हुई

चलन बन गया चाक-दामन मेरा
मेरी उस गली में वो इज़्ज़त हुई

वो अब चाहिए अब नहीं चाहिए
ये चाहत हुई या कि नफ़रत हुई


Thursday, January 14, 2016

जी हमी हैं मुहब्बत के मारे हुए
दिल के टूटे हुए जां से हारे हुए

जिन से बरसों की पहचान थी छुट गई
अजनबी आज से हम तुम्हारे हुए

इस ज़मीं को भी हम रास आए नही
हम वही हैं फ़लक़ से उतारे हुए

एक दिन आई दुनिया लिए अपने ग़म
हम भी बैठे थे दामन पसारे हुए

दिल जो टूटे नहीं ख़ाक में मिल गए
 दिल जो टूटे फ़लक़ के सितारे हुए

दोष सारा हमारे जुनूँ को न दो
उनकी जानिब से भी कुछ इशारे हुए

इक नज़र के तक़ाज़े पे सब ने कहा
हम तुम्हारे हुए  हम तुम्हारे हुए