सौ 'आहें' और हज़ार 'वाहें'
पुराने ज़ख्म कुरेदो तो दाद मिलती है
खुद अपने बखिये उधेड़ो तो दाद मिलती है
नपे -तुले से ये मिसरे कोई कमाल नहीं
जो इनपे ख़ून उड़ेलो तो दाद मिलती है
कभी -कभी तो ये देखा कि सादा मिसरे की
ज़रा सी बांह मरोड़ो तो दाद मिलती है
जदीदियत को हमारा भी वोट है लेकिन
ग़ज़ल ; ग़ज़ल की सी छेड़ो तो दाद मिलती है