Monday, September 16, 2013

दिल को ग़म से  भर जाना है
ये जीवन का हर्जाना है

सोचके  हैरानी होती है
हमको इक दिन मर जाना है

कुछ दिन के मेहमान यहाँ फिर
सबको  अपने घर जाना है

आंसू की भी  क्या क़िस्मत है
सुख में दुःख में झर जाना है

मल्हा, तूफां मौजें सुन लें
इस कश्ती को तर जाना है

2 comments:

  1. वाह .. बढ़िया ग़ज़ल !

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  2. सोचके हैरानी होती है
    हमको इक दिन मर जाना है

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