सोच रहा हूँ काग़ा आखिर क्यों संदेसा लाएगा
चारदिवारी पर तो हमने कांच बिछाकर रखा है
देखें उसके चाहने वाले रीस कहाँ तक करते हैं
हमने छत पे उसकी ख़ातिर चाँद मंगाकर रखा है
सोहबत की तासीर से शायद क़ुदरत भी वाक़िफ ही थी
उसने दिल को ज़ेहन से थोड़ा दूर बिठाकर रखा है
इक दिन मैं अपने बेटे के नाम से जाना जाऊंगा
बाप ने दिल ही दिल में ये अरमान सजाकर रखा है
आखिर तक वो ना माना तो दिल का ज़ख्म दिखा दूंगा
आड़े वक़्त को तरकश में ये तीर छुपाकर रखा है
चारदिवारी पर तो हमने कांच बिछाकर रखा है
देखें उसके चाहने वाले रीस कहाँ तक करते हैं
हमने छत पे उसकी ख़ातिर चाँद मंगाकर रखा है
सोहबत की तासीर से शायद क़ुदरत भी वाक़िफ ही थी
उसने दिल को ज़ेहन से थोड़ा दूर बिठाकर रखा है
इक दिन मैं अपने बेटे के नाम से जाना जाऊंगा
बाप ने दिल ही दिल में ये अरमान सजाकर रखा है
आखिर तक वो ना माना तो दिल का ज़ख्म दिखा दूंगा
आड़े वक़्त को तरकश में ये तीर छुपाकर रखा है