Tuesday, July 20, 2010

रोज़ाना

हर रोज़ मैं अपनी थोड़ी थोड़ी जान लेता हूँ
शाम तलक गर बचूं तो जिंदा हूँ मान लेता हूँ!!

बिखरा हुआ हूँ यूँ तो जानां अपनी ही मिटी में
बस तुमको देखा तो सीना तान लेता हूँ

 तेरी ही तो  ज़िद है  मेरी याद  में रहना है
वरना बता कब कोई मैं एहसान लेता हूँ !!!!

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