कई बार हमको मुहब्बत हुई
मगर तू भी दिल से न रुख़्सत हुई
तुझे सोचने बैठ जाता हूँ फिर
तुझे सोचने से जो फ़ुर्सत हुई
मुहब्बत के दुश्मन ख़बरदार हों
हुई फिर किसी को मुहब्बत हुई
चलन बन गया चाक-दामन मेरा
मेरी उस गली में वो इज़्ज़त हुई
वो अब चाहिए अब नहीं चाहिए
ये चाहत हुई या कि नफ़रत हुई
मगर तू भी दिल से न रुख़्सत हुई
तुझे सोचने बैठ जाता हूँ फिर
तुझे सोचने से जो फ़ुर्सत हुई
मुहब्बत के दुश्मन ख़बरदार हों
हुई फिर किसी को मुहब्बत हुई
चलन बन गया चाक-दामन मेरा
मेरी उस गली में वो इज़्ज़त हुई
वो अब चाहिए अब नहीं चाहिए
ये चाहत हुई या कि नफ़रत हुई