Friday, August 7, 2015

जब वो बोले कि कोई  प्यारा था
उनका मेरी तरफ इशारा था

हम निकल आये जिस्म से बाहर
उसने कुछ इस तरह पुकारा था

फेर देता था वो नज़र अपनी
हर नज़र का यही  उतारा था

रात देखा नहीं पर सुनते हैं
चाँद इक मुन्तज़िर हमारा था

मेरे अपने जलाते हैं मिलकर
मुझको जो जिस्म जां से प्यारा था

डूब जाना ही ठीक था मेरा
मेरे दोनों तरफ़ किनारा था